सांस्कृतिक मामलों का विभाग, केरल सरकार


केरल का कर्नाटक संगीत

त्रावणकोर साम्राज्य के तत्कालीन शासक, स्वाति तिरुनाल राम वर्मा को केरल में कर्नाटक संगीत या “आधुनिक दक्षिण भारतीय संगीत” को लोकप्रिय बनाने का श्रेय जाता है। उन्होंने कई कीर्तनों और रागमलिकाओं को कर्नाटक शैली में लिखा। उनके शिक्षक तंजावुर सुब्बारायर भी एक संगीतकार थे, जो बाद में त्रावणकोर के दीवान बनाए गए।

बाद में राजा ने एक प्रख्यात संगीतकार मेरुस्वामिकल को दरबार में आमंत्रित किया और उन्होंने उनका संरक्षण स्वीकार किया। इस समय तन्जावुर के महाराज का निधन हो गया था, जो कई संगीतकारों के प्रेरणास्रोत थे। जल्द ही कई संगीतकारों ने अपना स्थान त्रावणकोर शिफ्ट कर लिया। उनमें से तन्जावुर बंधु – चिन्नय्या, पोन्नय्या, सिवनन्दम और वडिवेलु को शासक की ओर से काफी तारीफ़ मिली।

तन्जावुर बंधु वरिष्ठ मुत्तुस्वामी दिक्क्षितर के शिष्य थे। वडिवेलु ने स्वाती तिरुनाल को कीर्तनों की रचना करने में मदद की और उन्हें कर्नाटक संगीत में वायलिन का प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया। काफी शोध और अध्ययन के बाद, स्वाति तिरुनाल वायलिन का इस्तेमाल करने के लिए मान गए और उन्होंने कर्नाटक संगीत समारोहों में वायलिन को पहले संगत वाद्ययंत्र का दर्ज़ा दिया।

त्यागराजा के एक शिष्य के त्रावणकोर आने के बाद त्यागराजा कृतियों त्रावणकोर में लोकप्रिय हो गए। स्वाति तिरुनाल ने मलयालम, संस्कृत, तेलुगु, कन्नड़ और हिंदी में कई संगीत रचनाएं की। राजा और उसके समकालीन संगीतकारों ने भी मोहिनियाट्टम और भरतनाट्यम जैसे नृत्यों के लिए भी गीत लिखे। षट्काला गोविंदा मारार, इरवी वर्मन तम्पी (जिसे इरयिम्मन तम्पी के नाम से भी जाना जाता है), परमशिवम भागवतर और चोलपुरम रघुनाथरायर कुछ ऐसे महान संगीतकार थे, जिन्हें स्वाति तिरुमल का संरक्षण प्राप्त था।

इरयिम्मन तम्पी एक मशहूर कर्नाटक संगीतकार थे, जिन्होंने प्रसिद्ध लोरी “ओमनतिन्कल किटावो” और अन्य सदाबहार गीतों, जैसे कि “पंचबाणन तन्नुटया” और “प्राणनाथनेनिक्कु नल्किया” की रचना की। उनकी बेटी कुट्टिकुंजु तन्कच्ची (1820-1904) ने भी स्वाति तिरुमल और इरयिम्मन तम्पी के निधन के बाद कई प्रसिद्ध संगीत रचनाएं की। उन्होंने कई तिरुवातिरा गाने, किलिपाट्टु और आट्टकथा बनाए। राग कल्याणी, खमस और सुरुट्टी में कई कीर्तनों की भी रचना की।

के.सी केशव पिल्लई (1868-1914) एक अन्य प्रसिद्ध संगीतकार हैं, जिन्होंने तन्कच्ची के बाद केरल की संगीत विधा को समृद्ध बनाया। उन्हें लगभग 70 कीर्तनों की रचना का श्रेय जाता है।

आधुनिक केरल के उत्तरी हिस्से में कर्नाटक संगीत को लोकप्रिय बनाने में संगीतकार पालक्काड परमेश्वर भागवतर (1815 - 1892) ने काफी अहम भूमिका निभाई थी। परमेश्वर भागवतर पहले गैर-त्रावणकोर कलाकार थे, जिन्हें स्वाति तिरुनाल के संगीत सभा (संगीत दरबार‌) में नियुक्त किया गया था।

लेखक, आलोचक और संगीतविशारद आट्टूर कृष्णा पिषारडी (1875-1964) ने “संगीत चंद्रिका” की रचना की थी, जो एक संगीत के बुनियादी सिद्धांतों और सैद्धांतिक सार-संक्षेप है। उन्होंने बिखरे हुए विचारों और संगीत के सिद्धांतों को एक स्थान पर संकलित किया। संगीत चंद्रिका को कला और संगीत विज्ञान के ऊपर सर्वश्रेष्ठ मलयालम रचना माना जाता है।

बीसवीं सदी के अंत तक कर्नाटक संगीत को केरल के विभिन्न हिस्सों में अगाध लोकप्रियता हासिल हुई। इस राज्य ने कई प्रख्यात कर्नाटक संगीतकारों को जन्म दिया। उनमें से महानतम स्थान रखने वाले संगीतकार चेम्बाई वैद्यनाथ भागवतर (1896-1974) थे। चेम्बाई दक्षिण भारत के विद्वान लोगों के समूह में एक प्रसिद्ध नाम हुआ करता था। उन्हें आम लोगों के बीच कर्नाटक संगीत कीर्तनों को लोकप्रिय बनाने का भी श्रेय जाता है। उनका “वातापि गणपतिम”, “करुणा चेयवान” जैसे प्रस्तुतीकरण श्रोताओं को भावविभोर कर डालते हैं। चेम्बाई ने देश के कई हिस्सों में असंख्य संगीत कार्यक्रम पेश किए। उनके कई शिष्य थे और उनमें से ज्यादा कर्नाटक संगीत, पार्श्व संगीत और अन्य संगीत विधाओं में ऊंचा नाम कमाया।

चेम्बाई ने अपने छात्रों से कभी पारिश्रमिक नहीं लिया और धर्म और जाति से परे उठकर उन्होंने अपने छात्रों को संगीत की तालीम दी। प्रख्यात कर्नाटक संगीतकार और पार्श्व गायक के. जे. येशुदास और जय-विजय (संगीतकार बंधु) चेम्बाई के कुछ प्रमुख शिष्यों में हैं।

त्रावणकोर के तत्कालीन शासक श्री चित्तिरा तिरुनाल बालराम वर्मा ने 1939 में तिरुवनंतपुरम में संगीत अकादमी की स्थापना की, जिसने संगीत विधा में वैज्ञानिक शिक्षा का मार्ग प्रशस्त किया। वर्ष 1962 में इसका नाम बदलकर श्री स्वाति तिरुनाल कॉलज ऑफ़ म्यूजिक कर दिया गया और अब यह स्टेट डाइरेक्टरेट ऑफ़ कॉलेजिएट एजुकेशन (शिक्षा विभाग) द्वारा संचालित किया जाता है। यह कॉलेज कर्नाटक वोकल और संगत वाद्ययंत्रों में पाठ्यक्रम पेश करता है। यहां स्नातकोत्तर और अनुसंधान सुविधाएं भी उपलब्ध हैं। प्रख्यात गायक शेम्मान्कुडी श्रीनिवास अय्यर इस कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल हैं। उनके कई सारे शिष्य थे।

कुछ अन्य प्रख्यात कलाकार, जिन्होंने राज्य की संगीत परंपरा को समृद्ध किया, शिक्षक और संगीतकार नेय्याट्टिंकरा वासुदेवन, पालक्काड के. वी नारायण स्वामी, मृगंदम उस्ताद पालक्काड मणि अय्यर और प्रसिद्ध मृगंदम शिक्षक और वादक मावेलिक्करा वेलुकुट्टी नायर हैं। अन्य प्रख्यात कलाकारों में शामिल हैं - पाला सी.के रामचंद्रन, प्रो. क. ओमनकुट्टी, मावेलिक्करा प्रभाकर वर्मा, आयाम्कुडी मणि हैं और युवा पीढ़ी में शामिल हैं - उण्णिकृष्णन, शंकरन नम्बूदिरी और अनुराधा कृष्णमूर्ति।