मलयालम में संगीत का सबसे लोकप्रिय शाखा ललित संगीत है। गाने सामान्य मलयाली कलात्मक अभिरुची का भिन्न हिस्सा होते हैं। ओस की बूंद की सुंदरता की तरह ही, गाने गरिमायमय जीवन को परिलक्षित करते हैं। ललित संगीत के आनंद में आम जनता और विद्वान जनों के बीच कोई अवरोध या विभाजन नहीं होते। ललित संगीत सभी के दिल छू लेते हैं। संगीत में हमारी एक समृद्ध परंपरा रही है। हमारे सभी शास्त्रीय – लोक कलाओं संगीत से जुड़ी हैं।
नाटक और चलचित्र गाने लोकप्रियता के मामले में काफी आगे हैं। आकाशवाणी से आने वाले ललित संगीत का अपना स्थान है। किसी भी संगीत का मूल उद्देश्य लोगों के ताल चेतना को जगाना है। मलयाली लोग हमेशा से अपने दिलों को झंकृत करने का अवसर खोजते हैं। और यह उद्देश्य नाटक और चलचित्र गानों से पूरा होता है जो एक समय तक यहां खूब फले-फूले। सामान्य मलयाली ऐसे गानों में अपने प्रेम, निराशा, हताशा, दुःख और खुशी को व्यक्त करने का अच्छा माध्यम मानते हैं। गाने का इस्तेमाल वे अपने विचारों और दर्शन को अभिव्यक्त करने में करते हैं।
मलयालम में लोकगीतों की एक समृद्ध परंपरा रही है। इन्हीं लोकगीतों से तो पहले नाटक गाने निकले थे। लोक संगीत ने चलचित्र गानों को काफी हद तक प्रभावित किया है। आरंभ में, मलयालम चलचित्र गाने तमिल और हिंदी गानों की नकल हुआ करते थे। उनके ट्यून भी समान ही होते थे। चलचित्रों से उधार लेने की ऐसी प्रवृत्ति ने मलयालम नाटक – चलचित्र गानों की क्षमता और विकास को सीमित किया।
बाद की पीढ़ियों ने अभय देव, पी. भास्करन, वयलार रामवर्मा, ओ.एन.वी इत्यादि जैसे गीतकारों के गीत पसंद करने लगी। इन गीतकारों ने मलयालम चलचित्र गानों को एक काव्यात्मक आयाम प्रदान किया। उन्हें जी. देवराजन, के. राघवन, वी. दक्षिणा मूर्ति, एम.एस बाबुराज जैसे कुशल संगीतकारों की मदद मिली। गीतकारों और संगीतकारों दोनों ने साथ मिलकर मलयालम चलचित्र संगीत में एक जागृति ला दी। यहां तक कि शास्त्रीय और लोक संगीत को भी खूबसूरत तरीके से चलचित्र संगीत केसाथ मिश्रित किया गया। बाद में तो दुनिया भर के संगीत का प्रभाव ग्रहण किया गया।
ड्रामा और नाटकों की स्थिति में, एक चिह्नित बदलाव देखा जा सकता है। 1950 और 1960 के दशक में मंचित किए जाने वाले नाटकों को लोगों से काफी सराहना मिली चूंकि इसमें यादगार गीत शामिल थे। केपीएसी के आगमन के साथ, लोक धुनों और द्रविड़ियन शैलियों को नाटक में शामिल किया गया। अभिनेता को गीत भी गाना पड़ता था। यह उन दिनों की शैली थी। दर्शक उसे काफी ध्यानपूर्वक देखा करते थे।
भले ही यह ख़ास स्थिति के लिए बनाए जाते थे, पर चलचित्र गानों का एक स्वतंत्र अस्तित्व होता था। चलचित्र गाने अलग-अलग मनोभावों को दिखाते थे और प्रकृति की सुंदरता को बयां करते और गहरे दर्शन भी प्रस्तुत करते थे। 75 वर्ष से अधिक पुराने चलचित्र संगीत के इतिहास की गहरी समीक्षा और शोध किया जाता रहा है। अध्ययनों से पता चलता है कि दशकों के दौरान चलचित्र संगीत ने परिपक्वता हासिल कर ली।
मलयाली लोगों के लिए, गाने हमेशा से दिल छूते रहे हैं। इसमें केरल जीवन की सारी समृद्धि है। यह एक प्रेरणा स्रोत तो रहे ही हैं, साथ ही बीते दिनों की याद भी दिलाते हैं, गहरी भावनाओं और कोमलता के भाव भी पैदा करते हैं।