सांस्कृतिक मामलों का विभाग, केरल सरकार


लोकगीत

लोकगीत सरल रूप से गाए जाते हैं, जो केरल के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी कहानियां बयां करते हैं। अलग-अलग क्षेत्रों के गीतों के बोल अगली पीढ़ी में मौखिक रूप से हस्तांतरित होते हैं। लोकगीत की उत्पत्ति लोगों की आजीविका से जुड़ी पाई जा सकती है। गाने का संगीत लोगों के पेशों को प्रतिबिंबित करता है। इस विधा में सरल, सामान्य शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है। चूंकि हरेक क्षेत्र की पहचान एक विशेष पेशे से होती है, इसलिए गानों में भी क्षेत्रों के हिसाब से भिन्नता पाई जाती है। ये गाने न केवल तनाव दूर करने के लिए गाए जाते हैं, बल्कि यह पेशे के निर्वहन के तरीके और उसके परिणाम को भी बताते हैं।

कई ऐसे लोकगीत हैं, जो ईश्वर की स्तुति करते और प्रकृति के रूपों (वर्षा, गर्मी, बिजली, बादलों की गरज) को अलंकृत करते हैं। हरेक का एक अलग गीत होता है। उदाहरण के लिए, खेतों की जुताई के समय गाए जाने वाले गीत पेड़ की रोपाई के समय गाए जाने वाले गीतों से अलग होते हैं। साथ ही, बिचड़े की रोपाई के समय गाया जाने वाला और कटाई के समय जाया जाने वाला गीत भिन्न होता है। इस प्रकार हरेक गाना एक अलग कहानी बयां करता है। इन गानों को सुनकर हमें खेती करने के तौर-तरीकों की जानकारी मिलती हैं।

उसी प्रकार, मछुआरे, नाविक समुदाय के लोगों के अपने-अपने गीत हैं। विलपाट्टु, माप्पिलापाट्टु, वडक्कन पाट्टु आज भी प्रचलित हैं। इन्हें बगैर वाद्ययंत्रों के गाया जाता है, पर इसमें कोई संदेह नहीं कि ये गाने लोकप्रिय और प्रशंसित हैं। कभी-कभी कुछ लोग गीतों में एक-दो वाद्ययंत्रों को भी बजाया जाता है।