सांस्कृतिक मामलों का विभाग, केरल सरकार


व्यंजन

किसी भी समुदाय की खाद्य आदतें उनके स्थान की भौगोलिक विशेषताओं, उसकी जलवायु दशाओं और लोगों के कलात्मक बोधों द्वारा तय होती हैं। उदाहरण के लिए, अच्छी उपज देने वाली किसी उर्वर भूमि पर निवास करने वाले समुदाय अपने खाने में सामान्यतः दूध, मक्खन, शहद, चीनी जैसी तमाम तरह की चीजों को शामिल करेगा। और जो लोग कलात्मक बोध वाले होते हैं, वे उन्हीं चीजों को परोसने से पहले उन्हें सजाएंगे और उनपर चांदमारी करेंगे।

हम जो खाना पकाते हैं, वे मुख्यतः दो होते हैं- शाकाहारी व्यंजन और मांसाहारी व्यंजन। मांसाहारी व्यंजन प्रायः पर्याप्त मसालों के साथ पकाए जाते हैं, जबकि शाकाहारी व्यंजन अपेक्षाकृत कम मसाले से तैयार होते हैं।

आयुर्वेद की समग्रतापूर्ण आरोग्य प्रणाली, जो कुछ हद तक आहार आधारित है, दुनिया को केरल की ओर से एक उपहार ही है। केरल की खान-पान की आदतें आयुर्वेद के सिद्धांतों से भी प्रभावित हैं, जो शरीर और मन के बीच एक सही संतुलन का संकेत करते है। कई केरल व्यंजन इस प्रकार तैयार किए जाते हैं, जो मन और शरीर के बीक संतुलन पैदा कर सके।

इस भूमि क परंपरागत ज्ञान कहता है कि गलत तरीके से तैयार किया गया भोजन विषैले भोजन के समतुल्य है। उदाहरण के लिए, दूध और नींबू को मिश्रित करना स्वास्थ्य के विरुद्ध है और मछली का सेवन कभी भी दूध के साथ नहीं किया जाना चाहिए। उसी प्रकार दही के साथ चीनी या लहसुन मिलाने की सलाह नहीं दी जाती है। हालांकि ये सभी नियम आज के दौर में भोजन पकाने के दौरान कड़ाई से पालन नहीं किए जाते, पर आज भी पारंपरिक रेसिपी में उनका पालन अवश्य किया जाता है।