सांस्कृतिक मामलों का विभाग, केरल सरकार


संगीत

केरल की संगीत परंपरा मार्गी और देशी शैलियों से मिलकर बनी है। मार्गी शैली निर्धारित सिद्धांतों के आधार पर शास्त्रीय परंपरा का पालन करती है, जबकि देशी क्षेत्रीय परंपराओं से जन्म देती है, जिसके नियम कुछ ज्यादा ही ढीले होते हैं।

इस राज्य की गायन और थाप लगाकर निकालने वाले संगीत की एक समृद्ध परंपरा रही है। यह विभिन्न प्रकार के धार्मिक, मंदिर और पवित्र वाटिकाओं के अनुष्ठानों और कथकली जैसे शास्त्रीय कला स्वरूपों से जुड़ी है। समकालीन संगीत पर पश्चिमी संगीत का भी प्रभाव देखने को मिलता है।

सोपान संगीतम को एक ऐसी पारंपरिक शैली माना जाता है, जो केरल का मूल है। इसने कथकली संगीत पर एक निश्चित प्रभाव डाला है।

इस राज्य ने भारतीय मार्गी संगीत परंपरा की कर्नाटक और हिंदुस्तानी संगीत विधाओं में अपार योगदान दिया है। इससे जुड़े प्रसिद्ध व्यक्तियों की सूची का आरंभ तत्कालीन त्रावणकोर शासक- स्वाती तिरुनाल राम वर्मा, इरयिम्मन तम्पी, कुट्टिकुंजु तन्कच्ची, षट्काला गोविंदा मारार जैसे लोगों से होता है।

इस क्षेत्र का लोक और अर्ध-शास्त्रीय/सुगम विधाओं की एक समृद्ध परंपरा रही है। नायकों की सराहना में रचित वडक्कनपाट्टु लोक संगीत में शुमार प्रसिद्ध संगीत रचना और तेक्कनपाट्टु लोक संगीत में प्रसिद्ध पहचान रखता है।

सरल बोलों और संगीत वाला माप्पिलापाट्टु मलबार क्षेत्र का योगदान है। मध्य त्रावणकोर में लोकप्रिय वन्चिपाट्टु का साहित्य में भी एक अहम स्थान है।

अनुष्ठानिक गीतों जैसे कि भद्रकालीपाट्टु, अय्यप्पनपाट्टु और कलमेजुत्तुपाट्टु, पौराणिक गीतों जो तिरुवातिरक्कली, कुम्मी और कोलाट्टम जैसे कला रूपों में हैं और महोत्सव और पूरम गीत केरल की संगीत संस्कृति की विविधता प्रदर्शित करते हैं।

ताल योजना (बीट्स की विशेष संख्या वाली मेट्रिक शैली) केरल के संगीत की ख़ास पहचान है। जहां ताल को भारत के अन्य हिस्सों में वोकल संगीत की संगत माना जाता है, वहीं केरल के संगीतकार इसे भिन्न रूप से लेते हैं।

उन्होंने विशेष तालवाद्य प्रदर्शनों का विकास किया, जिसमें विभिन्न थाप उपकरण शामिल हैं। चेंडा, तिमिला, कुरुंकुजल, इडक्का, मधलम, कोम्बु, इलत्तालम और चेंगिला जैसे वाद्ययंत्रों का इस्तेमाल साथ मिलाकर इस अनूठे तरह से किया जाता है कि यह केरल के थाप संगीत को एक ख़ास टच देता है।

ढोलक में पैंडिमेलम, पंचारिमेलम,पंचवाद्यम शामिल रहते हैं और तयम्बक ने राज्य के लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि हासिल की है। केरल की परंपरा के ताल का इस्तेमाल कूटियाट्टम, कूत्तु, कथकली, तुल्लल, मुटियेट्टु, केलि और पानकोट्टु जैसे कला रूपों में किया जाता है।

इस राज्य के प्रमुख ताल हैं - चेम्बडा, त्रिपुडा, अडन्ता, चम्बा, पंचारी और एकतालम।

केरल में चलचित्र संगीत सर्वाधिक लोकप्रिय शैली है। आरंभ में चलचित्र गीत तमिल बैले गानों या लोकप्रिय हिंदी गीतों के नकल तक ही सीमित थे। पर वर्ष 1954 में “नीलकुयिल” रिलीज हुई, जो एक परिवर्तक साबित हुई। पी भास्करन द्वारा लिखित और आर. राघवन द्वारा रचित इसके गाने काफी हिट रहे।

मलयालम चलचित्र के प्रमुख संगीत निर्देशकों की एक थिएटर पृष्ठभूमि रही थी। उस समय के गीतकारों ने निर्देशकों को अपनी प्रतिभा साबित करने की पर्याप्त गुंजाइश दी। चलचित्र संगीत शैली ने लोकगीतों, माप्पिलापाट्टु, वडक्कनपाट्टु, सोपान संगीतम, कर्नाटक और हिंदुस्तानी संगीत शैलियों के तत्त्वों को ग्रहण किया।

पी. भास्करन, वयलार राम वर्मा, ओ.एन.वी कुरुप और श्रीकुमारन तम्पी ऐसे संगीत दिग्गज थे, जिन्होंने संगीत और साहित्य का एक अनूठा मिश्रण तैयार किया था।

जी. देवराजन, जॉब, के. राघवन, के. बाबुराज, वी. दक्षिणामूर्ती, एन.बी श्रीनिवासन और चिदम्बरनाथ ने इस शैली को नई ऊंचाइयां प्रदान कीं। ये निर्देशक अपने अनूठी शैलियों के लिए जाने जाते थे।

राज्य के अद्भुत गायकों में कोष़िक्कोड अब्दुल खादर, के पी उदयभानु, कमुकरा पुरुषोत्तमन, के. जे. येशुदास, पी. जयचंद्रन, पी. लीला, पी. सुशीला, एस. जानकी और माधुरी शामिल हैं।