षट्काला गोविंदा मारार 19वीं शताब्दी में रहते कर्नाटक संगीत के प्रसिद्ध मर्मज्ञ थे। वह श्री स्वाती तिरुनाल के दरबार/ संगीत सभा के आठ विद्वानों (आस्तान विद्वान्) में से एक थे। इस बारे में एक कहानी है कि कैसे गोविंदा मारार षट्काला गोविंदा मारार बने। सात तारों वाले अपने खास तंबुरु के साथ वह अतिविलंबरम से लेकर अबसे ऊंची या छठे गतिमान अतिद्रुतम तक सभी अष्टक बजा सकते थे। यह अतिविशिष्ट प्रतिभा ने उन्हें “षट्काला” (उनके नाम का उपसर्ग) की उपाधि दिलाई। उनके समकालीन कर्नाटक संगीत के सम्राट संगीतज्ञ श्री त्यागराज स्वामी उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं।
उनकी प्रतिभा के सम्मान में उनके पुस्तैनी निवास स्थल राममंगलम में एक स्मारक - मारार कला समिति का निर्माण कराया गया। यह स्मारक 1980 में प्रसिद्ध गांधीवादी और समाज सुधारक प्रो. एम.पी. मनमधन के निर्देशन और देखरेख में रखा गया। यह समिति पारंपरिक संगीत और मंदिर कलाओं के प्रोत्साहन में संलग्न है। समिति और केरल राज्य संगीत नाटक अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में हर वर्ष षट्काला गोविंदा मारार संगीतोत्सवम नामक संगीत उत्सव का आयोजन किया जाता है। इस समारोह का शुभारंभ 1993 में हुआ था। देश-विदेश के संगीतकार और कलाकार इस समारोह में भाग लेते हैं।